नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ सख्त कदम उठाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे विज्ञापन समाज के लिए हानिकारक हैं और इन पर नजर रखना जरूरी है। इसके लिए सभी राज्यों को दो महीने के भीतर एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का आदेश दिया गया है।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि 1954 के ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट के तहत प्रतिबंधित विज्ञापनों से निपटने के लिए जनता की शिकायतों को सुनने वाला तंत्र बनाया जाए। पीठ ने राज्यों से इस तंत्र की जानकारी लोगों तक पहुंचाने और पुलिस को इस कानून को लागू करने के लिए जागरूक करने को भी कहा। इस फैसले से भ्रामक विज्ञापनों पर लगाम लगाने की दिशा में मजबूत कदम उठने की उम्मीद है।
इससे पहले, 7 मई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने विज्ञापनदाताओं के लिए स्व-घोषणा को अनिवार्य किया था। कोर्ट ने केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के आधार पर कहा था कि कोई भी विज्ञापन बिना स्व-घोषणा के जारी नहीं होगा।
यह मामला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की 2022 में दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें पतंजलि और योगगुरु रामदेव पर कोविड वैक्सीनेशन और आधुनिक चिकित्सा के खिलाफ भ्रामक प्रचार का आरोप लगाया गया था। आईएमए की शिकायत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया। कोर्ट का यह कदम न केवल विज्ञापन उद्योग को प्रभावित करेगा, बल्कि आम लोगों को गलत सूचनाओं से बचाने में भी मददगार साबित होगा।