भिलाई। बसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा माना जाता है जब न तो पूरा ठंड होता है न ही गर्मी। बारिश से पुलकित वसुंधरा किसी नवयौवना की तरह श्रृंगारित होकर अंगड़ाई लेने लग जाती है। उसके स्वागत में कलियां खिल उठती है तो पत्ते भी रास्तों में गिरकर न्यौछावर हो जाती हैं।
कोयल की कूहू कूहू, पंछियों के कलरव और मौहा के मदमस्त खुश्बू से पूरा वातावरण तरंगित हो उठता है। कवियों ने भी बसंत ऋतु पर एक से बढ़कर एक रचनाओं का निर्माण किया है। अंचल के प्रख्यात मॉडर्न आर्ट चित्रकार डी.एस.विद्यार्थी ने इस ऋतु से संबंधित मां सरस्वती की नयनाभिराम और गूढ़ रहस्य से परीपूर्ण एक पेन्टिंग का निर्माण किया है जो उसके भावार्थ को समझने पर मजबूर कर देती है।
पौराणिक आख्यानो में वर्णन है कि एक बार मां सरस्वती भगवान् श्रीकृष्ण के दिव्य सौंदर्य को देखकर मोहित हो उठती हैं। वह उनके भक्ति और प्रेम में ऐसे डूब जाती हैं कि उनका रोम रोम कृष्णमय हो उठता है। जिससे उसका शरीर भी काला पड़ जाता है। यही नहीं वे अपने सिर पर मोर मुकुट भी धारण करने लग जाती हैं। इसे भारतीय अध्यात्म में प्रेम की चरम अवस्था मानी जाती है जब मन के साथ साथ शरीर भी प्रेमी की तरह हो जाता है।
ऐसा ही उदाहरण स्वामी विवेकानंद के गुरू रामकृष्ण परमहंस के लिए भी देखा गया था जब वे मां काली के परमानंद में सशरीर डूब गए थे। चित्रकार डी.एस.विद्यार्थी ने चित्र का रहस्योद्घाटन करते हुए जानकारी दी है कि मां सरस्वती के इस प्रेम से कृष्ण इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने मां सरस्वती की पूजा करनी शुरू कर दी। यही नहीं उन्होंने वरदान दिया कि मां सरस्वती की तरह जो भी पूरे तन मन से आसक्ति में डूबेगा उसे समस्त ज्ञान की प्राप्ति हो जाएगी। वह कला समर्पण और विद्या की अथाह ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकेगा। कालान्तर में तभी से बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। और समस्त कलाकार, ऋषि, मुनि व ज्ञान के पिपासु मां सरस्वती की अराधना में पुरे मनोयोग से लग जाते हैं।