Chamba. चंबा। प्रदेश सरकार के पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने हीलिंग हिमालयाज के सहयोग से मणिमहेश यात्रा में डिजिटल डिपाजिट रिफंड सिस्टम का सफलतापूर्वक संचालन किया है। यह हिमाचल का पहला बड़े पैमाने पर तकनीक आधारित डिपॉजिट रिफंड सिस्टम प्रयोग है। इसका उद्देश्य प्लास्टिक कचरे पर रोक लगाना और हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखना रहा। इस पहल के तहत जिला प्रशासन चंबा ने हड़सर से मणिमहेश झील तक 13 किलोमीटर की यात्रा मार्ग को प्लास्टिक नियंत्रित क्षेत्र घोषित किया। यात्रा में बिकने और ले जाए जाने वाले प्रत्येक उत्पाद पर यूनिक क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य किया गया, ताकि डिपॉजिट राशि ली जा सके और उसकी डिजिटल टे्रसिंग पूरी तरह पारदर्शी ढंग से हो सके। 25 दिन की यात्रा के दौरान तीन लाख से अधिक क्यूआर कोड लगे प्रोडक्ट्स वितरित किए गए, जिनमें 99 प्रतिशत प्रोडक्ट्स को डिजिटल टे्रसेबिलिटी के माध्यम से सफलतापूर्वक पुन
लिया गया।
पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डा. सुरेश अत्री ने कहा कि कहा मणिमहेश में डिजिटल डिपाजिट रिफंड सिस्टम की सफल पहल हिमाचल प्रदेश की विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी,ढांचे और परिपत्र अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। राज्य ने अगस्त में डिपाजिट रिफंड स्कीम अधिसूचित कर इसे हिमालय के भौगोलिक परिस्थितियों में परीक्षण के लिए चुना है। डिपाजिट राशि सीधे तीर्थयात्रियों, दुकानदारों और लंगर आयोजकों को यूपीआई ट्रांजेक्शन के जरिए वापस दी गई। पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित करते हुए 359 दुकानदार और 32 लंगर सिस्टम से जुड़े साथ ही खच्चर संचालक, सफाई मित्र और स्थानीय स्वयंसेवक भी इस मुहिम का हिस्सा बने। इसके लिए कलेक्शन सेंटर बनाए गए थे। 100 प्रतिशत ट्रेसबिलिटी हासिल हुई कोई भी कोड अनस्कैन या अनवेरिफाइड नहीं रहा। 20 स्थानीय लोगों को हरित नौकरियां मिली और देश भर से 50 से ज्यादा स्वयंसेवकों ने इसमें अपना योगदान दिया।

