Bilaspur. बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पुलिस विभाग की मनमानी पर कड़ा रुख अपनाते हुए महिला उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) एसएस टेकाम के खिलाफ पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी वसूली आदेश को निरस्त कर दिया है। अदालत ने कहा कि बिना सुनवाई और उचित कारण बताए किसी अधिकारी के वेतन से राशि काटना न केवल कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के भी खिलाफ है। हाईकोर्ट ने इस मामले को प्रशासनिक मनमानी की मिसाल बताते हुए स्पष्ट किया कि शासन और उसके अधिकारी कानून से ऊपर नहीं हैं। अदालत ने आदेश देते हुए कहा कि डीएसपी टेकाम के वेतन से की गई कटौती तत्काल वापस की जाए और भविष्य में इस तरह की अवैध कार्रवाई दोहराने से शासन बचे।
डीएसपी ने हाईकोर्ट में दायर की थी याचिका
याचिकाकर्ता डीएसपी एसएस टेकाम ने अदालत में अपनी याचिका दायर करते हुए बताया कि पुलिस महानिदेशक के निर्देश पर उनके खिलाफ वसूली आदेश जारी कर वेतन से राशि काट ली गई, जबकि किसी भी स्तर पर उन्हें न तो नोटिस जारी किया गया और न ही अपनी बात रखने का अवसर मिला। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिषेक पांडेय और वरुण शर्मा ने अदालत को बताया कि यह आदेश पूरी तरह मनमाना और नियम-विरुद्ध है। यह प्रशासनिक प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि वसूली आदेश में डीएसपी पर एक वर्ष पूर्व वाहन किराया भुगतान में कथित अनियमितता को लेकर जिम्मेदारी तय की गई थी, जबकि उस मामले में न तो कोई जांच की गई थी और न ही उनका सीधा संबंध साबित हुआ था।
हाईकोर्ट ने कहा — बिना सुनवाई किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि प्रशासनिक अधिकारी चाहे किसी भी स्तर पर हों, उन्हें कानून के तहत काम करना होता है। किसी कर्मचारी या अधिकारी पर आर्थिक दंड या वसूली का आदेश तभी लगाया जा सकता है, जब उसे पूर्व सूचना देकर अपनी बात रखने का अवसर दिया गया हो। कोर्ट ने कहा कि पुलिस मुख्यालय ने बिना जांच और बिना जवाब प्राप्त किए वसूली आदेश जारी किया, जो कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का खुला उल्लंघन है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि “सुनवाई के अधिकार का हनन किसी भी अनुशासनात्मक कार्रवाई को अवैध बना देता है।”
अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन का उल्लेख
अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि बिना उचित प्रक्रिया अपनाए किसी अधिकारी पर दंड लगाना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने कहा “किसी भी सरकारी कर्मचारी को बिना जांच, नोटिस और सुनवाई के दोषी नहीं ठहराया जा सकता। वसूली आदेश को बिना कारण और बिना प्रक्रिया के जारी किया गया, जो पूरी तरह असंवैधानिक है।”
पुलिस मुख्यालय को राशि लौटाने और सतर्क रहने का निर्देश
हाईकोर्ट ने न केवल वसूली आदेश को रद्द किया बल्कि पुलिस मुख्यालय को यह भी निर्देश दिया कि डीएसपी टेकाम के वेतन से काटी गई पूरी राशि तुरंत लौटाई जाए। साथ ही शासन को चेताया गया कि भविष्य में ऐसी मनमानी कार्रवाई करने पर अदालत सख्त रुख अपनाएगी। अदालत ने कहा कि अधिकारियों को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ कानूनी और पारदर्शी तरीके से व्यवहार करना चाहिए। किसी भी स्थिति में “आदेश पहले, सुनवाई बाद में” की प्रवृत्ति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
न्यायिक व्यवस्था में भरोसे की जीत
इस फैसले को प्रशासनिक जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप माना जा रहा है। अदालत के आदेश के बाद पुलिस विभाग को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में किसी भी वसूली या दंडात्मक कार्रवाई से पहले सुनवाई और पारदर्शिता की प्रक्रिया का पालन हो। कानूनी जानकारों का कहना है कि यह फैसला न केवल डीएसपी टेकाम के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह अन्य सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए भी न्यायिक सुरक्षा का एक मजबूत उदाहरण बनेगा।

