Business व्यापार: आज की बड़ी खबर में, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर (Reliance Infra) के खिलाफ छह परिसरों पर छापेमारी की है। यह कार्रवाई विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के उल्लंघन और ऋण‑धोखाधड़ी से जुड़े 17,000 करोड़ रुपये के कथित घपले की जांच के सिलसिले में की गई है
छापेमारी की पृष्ठभूमि
ED ने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के उन परिसरों पर छापे मारे, जो रिलायंस इंफ्रा से जुड़े बताए जाते
यह कार्रवाई FEMA के तहत विदेशी मुद्रा लेनदेन नियमों के उल्लंघन को लेकर की गई बताई जा रही है।
प्रारंभिक रिपोर्टों में संकेत मिलता है कि छापेमारी का मकसद साथ जुड़े वित्तीय कागजात, डिजिटल रिकॉर्ड्स, संभावित संदिग्ध लेनदेन आदि को जब्त करना है
आरोप और जांच का स्वरूप
इस मामले की जड़ में कथित ऋण धोखाधड़ी और फंड डाइवर्जन का आरोप है। ED का यह भी दावा है कि पिछले कुछ वर्षों में ऋणों को शेल कंपनियों और सम्बंधित पक्षों की ओर मोड़ा गया। SEBI ने भी अपनी रिपोर्ट में यह संकेत दिया है कि रिलायंस इंफ्रा ने कुछ लेनदेन को “related party” (सम्बंधित पक्ष) के रूप में घोषित नहीं किया — जिससे नियमों का उल्लंघन हुआ हो सकता है। कंपनी की ओर से यह दावा किया गया है कि उनका वास्तविक आउटस्टैंडिंग एक्सपोज़र लगभग 6,500 करोड़ रुपये है, और यह राशि उन्होंने सार्वजनिक रूप से पहले ही खुलासा की थी। कंपनी ने यह भी बताया है कि इस मामले को मेडिएशन प्रक्रिया द्वारा हल करने का प्रयास किया गया था और दावा किया कि उनकी राशि पूरी तरह रिकवर हो चुकी है।
रिलायंस इंफ्रा की प्रतिक्रिया
छापेमारी के बाद रिलायंस इंफ्रा और रिलायंस पावर ने बयान जारी किया कि इस कार्रवाई का उनके संचालन, वित्तीय स्थिति या शेयरधारकों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, दोनों कंपनियों ने यह साफ किया है कि अनिल अंबानी बोर्ड का हिस्सा नहीं हैं और यह आरोप शायद RCOM (Reliance Communications) और RHFL (Reliance Home Finance Ltd.) से जुड़े पुराने मामलों से संबंधित हैं। उन्होंने बताया कि RCOM पहले से ही Corporate Insolvency Resolution Process में है, और RHFL भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक संकल्पित हो चुकी है।
जोखिम, प्रभाव और आगे की संभावना
यदि जांच में यह प्रमाणित हो जाता है कि ऋण या फंड को इधर-उधर किया गया था, तो संबंधित अधिकारियों, प्रबंधन और निदेशकों पर गंभीर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। यह मामला वित्तीय बाजारों में निवेशकों की सुनामी जैसा असर डाल सकता है—स्टॉक मूल्य, भरोसा और पूँजी प्रवाह प्रभावित हो सकते हैं। सरकारें और विनियामक एजेंसियाँ इस तरह के मामलों को गंभीरता से लेती हैं। यदि कोर्ट और ED संयुक्त रूप से कार्रवाई करें, तो कंपनी को गंभीर दंड या जुर्माना भी भुगतना पड़ सकता है ,इस छापेमारी के बाद अन्य समूह कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं की भी लकीर खींची जा सकती है, खासकर जो ऋण लेन-देन या फंड ट्रांसफर से जुड़े हों।
अनिल अंबानी समूह के लिए यह छापेमारी सिर्फ एक दूसरा झटका हो सकती है। पिछले कुछ वर्षों से समूह की कई कंपनियों ने दिवालियापन, ऋण संकट और विवादों का सामना किया है। अगर यह मामला ED और अन्य एजेंसियों की जांच में गंभीर माना जाता है तो यह समूह के लिए और अधिक संकट का कारण बन सकता है।
फिलहाल स्थिति जारी है — ED की जाँची, जब्ती और दस्तावेज रिकार्डिंग का सिलसिला सुस्त नहीं हुआ है। आने वाले कुछ हफ्तों में इस मामले की दिशा और परिणाम स्पष्ट होंगे।