रामानुजगंज। रामानुजगंज के 14 वर्षीय दिव्य कुमार जोशी की कहानी एक प्रेरक उदाहरण है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी युवा अपने परिवार की जिम्मेदारी निभाते हैं। कक्षा 9 में पढ़ रहे दिव्य अपने परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य हैं और अपनी मां व दो छोटे भाई-बहनों का भरण पोषण मोमोज का ठेला लगाकर कर रहे हैं। दिव्य के पिता, हरिओम जोशी, एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक थे। उनका निधन लगभग सात साल पहले हो गया। पिता के निधन के बाद परिवार पर आर्थिक संकट आ गया। मां ने अपने बच्चों का पालन-पोषण किया, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर रही। इसी कठिनाई में दिव्य ने छोटे उम्र में ही जिम्मेदारी उठाई।
दिव्य ने अपने करियर की शुरुआत चाचा के मोमोज ठेले पर मदद करने से की। जब वह केवल नौ वर्ष के थे, उन्होंने गांधी चौक के पास अपने चाचा के ठेले पर हाथ बंटाना शुरू किया। पिछले तीन वर्षों से दिव्य अपना स्वयं का ठेला चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। दिव्य के साथ उनके नौ वर्षीय छोटे भाई राजकुमार जोशी भी ठेले के काम में मदद करते हैं। दोनों भाई रोज़ रात 8 बजे दुकान बंद करने के बाद ठेले को घर तक पहुंचाते हैं और बर्तन साफ करने के बाद ही घर लौटते हैं। दिव्य के मोमोज इतने लोकप्रिय हैं कि ग्राहक उनकी दुकान का बेसब्री से इंतजार करते हैं।
दिव्य बताते हैं कि उनकी दैनिक बिक्री 800 से 1400 रुपये तक होती है। उनका दिन सुबह 6:30 बजे सैर के साथ शुरू होता है, उसके बाद पढ़ाई और स्कूल की तैयारी होती है। स्कूल से शाम 4 बजे लौटने के बाद वह जल्दी खाना खाकर ठेले के लिए निकल पड़ते हैं। उनकी दिनचर्या पढ़ाई और काम के संतुलन का एक उदाहरण है। दिव्य वर्तमान में शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रामानुजगंज में पढ़ाई कर रहे हैं। पढ़ाई में उनकी मेहनत भी उनकी मेहनती जीवनशैली की तरह प्रशंसनीय है। उन्होंने बताया कि शिक्षा के साथ-साथ अपने परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी निभाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण है, लेकिन वह कभी हार नहीं मानते।
दिव्य की कहानी सिर्फ उनके परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह दर्शाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी बच्चे मेहनत, धैर्य और लगन से अपने जीवन और परिवार की बेहतर स्थिति सुनिश्चित कर सकते हैं। स्थानीय नागरिकों और ग्राहकों ने भी दिव्य की मेहनत की सराहना की और कहा कि उनके मोमोज की गुणवत्ता और स्वाद ने उन्हें पूरे इलाके में लोकप्रिय बना दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चे समाज के लिए मिसाल हैं और सरकार एवं समाज को ऐसे युवाओं का समर्थन करना चाहिए। दिव्य का यह संघर्ष यह दिखाता है कि शिक्षा और मेहनत दोनों साथ चल सकते हैं। उनकी कहानी यह संदेश देती है कि जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, और छोटे से प्रयास से भी बड़े परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।

