पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध इसलिए जरूरी माना गया है क्योंकि आप किसी न किसी रूप में अपने पूर्वजों के नाम, पहचान या उनके द्वारा अर्जित किये गए चीजों का लाभ पा रहे होते हैं। ऐसे में आपकी जिम्मेदारी और भावना होनी चाहिए कि आप उन पूर्वजों के प्रति आभार और सम्मान व्यक्त करें और श्राद्ध और तर्पण के जरिये उनकी आगे की सुखद यात्रा की कामना करें। पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होती है और आश्विन अमावस्या को इसका समापन होता है। इस अंतिम दिन को सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं।
इस साल सर्वपितृ अमावस्या 21 सितम्बर 2025 को है। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनका किसी कारणवश अबतक श्राद्ध नहीं किया गया है या फिर जिनके मृत्यु की तिथि पता नहीं होती। यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस एक ही दिन में समस्त वंशजों को तृप्त किया जाता है। इस दिन पितृलोक से संपर्क की शक्ति अधिक होती है और इस तर्पण से वंश में सुख, स्वास्थ्य और संतुलन आता है। इस दिन को क्यों ख़ास माना गया है, चलिए जानते हैं…सर्वपितृ अमावस्या क्यों है विशेष?
अमावस्या को देवताओं की पूजा के लिए निषिद्ध दिन माना गया है, लेकिन पितरों की पूजा अनिवार्य माना जाता है, खासकर सर्वपितृ अमावस्या पूर्वजों की मुक्ति का ख़ास दिन माना जाता है। यह दिन अतृप्त आत्माओं को शांति देने और पूर्वजों के ऋण से मुक्त होने का अवसर है। शास्त्रों के अनुसार, यह एकमात्र दिन है जब मातृकुल और पितृकुल दोनों पक्ष के पितरों का सामूहिक श्राद्ध किया जा सकता है।
अगर आपको किसी पूर्वज के मृत्यु की तिथि नहीं याद है या फिर आप अपने पूर्वजों के बारे में ज्यादा नहीं जानते, तब भी इस दिन श्राद्ध और तर्पण करने से उन सबको लाभ मिलता है। उनकी आत्मा को शान्ति और मुक्ति का मार्ग मिलता है। अगर आपके परिवार में या पूर्वज में कोई साधु-संत रहा है और आपको उनके मृत्यु के बारे में भी कुछ ख़ास नहीं पता, तो भी आप इस दिन उनका श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अमावस्या के दिन पितर अपने वंशजों से मिलने पृथ्वी पर आते हैं। इस दिन उन्हें जल, तिल और भोजन अर्पित करने से वे संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं।
अमावस्या तिथि पितरों को क्यों समर्पित है?हर अमावस्या का दिन पितरों को समर्पित होता है। इसका ख़ास कारण इस दिन की ऊर्जा होती है। अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित है क्योंकि यह आत्मा, मन और ऊर्जा का संगम दिन है। असल में, अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में रहते हैं। सूर्य आत्मा का प्रतीक है और चंद्रमा मन का। जब दोनों का संगम होता है, तो यह तिथि आत्मा और मन के मेल का सूचक मानी जाती है।
यही कारण है कि यह तिथि पितरों को अर्पण करने के लिए सबसे शुभ और उपयुक्त मानी गई है। अमावस्या की रात को चंद्रमा दिखाई नहीं देता, जिससे तामसिक ऊर्जा बढ़ती है। श्राद्ध और तर्पण से इस तमस को सात्विक ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है। इसके अलावा, इस दिन पितृ लोक के लिए किए गए मंत्र-जाप और तर्पण का प्रभाव अधिक माना जाता है।

