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Who Started Sunday Holiday in India? आज सुबह जब आप आराम से उठे होंगे, चाय की चुस्कियों के साथ अख़बार पढ़ रहे होंगे या फिर देर तक सोने का आनंद ले रहे होंगे, तो क्या कभी सोचा है कि ये प्यारी सी ‘रविवार की छुट्टी’ हमेशा से हमारे साथ नहीं थी? इसकी कहानी बड़ी दिलचस्प है और इसके पीछे एक लंबा संघर्ष छिपा है.
रोम से शुरू हुआ किस्सा
चलिए, समय में थोड़ा पीछे चलते हैं, लगभग 1700 साल पहले. बात है रोमन साम्राज्य की. साल 321 में वहां के पहले ईसाई सम्राट, कॉन्सटेंटाइन ने एक आदेश जारी किया. उन्होंने कहा कि ‘सूर्य के दिन’ (Day of the Sun) यानी रविवार को सभी लोग काम से आराम लेंगे और पूजा-पाठ करेंगे. यहीं से रविवार को एक ख़ास दिन मानने की शुरुआत हुई. ईसाई मान्यता के अनुसार, ईश्वर ने 6 दिनों में दुनिया बनाई और सातवें दिन आराम किया, इसलिए यह दिन आराम का दिन बन गया.
भारत में नहीं था छुट्टी का रिवाज़
अब आते हैं अपने देश भारत में. जब यहाँ अंग्रेज़ों का शासन था, तब मज़दूरों के लिए कोई छुट्टी नहीं होती थी. उन्हें हफ़्ते के सातों दिन, बिना रुके काम करना पड़ता था. सोचिए, कैसी ज़िंदगी रही होगी! अंग्रेज़ अफ़सर तो रविवार को चर्च जाते थे और अपना दिन आराम से बिताते थे, लेकिन भारतीय मिल मज़दूरों को यह सुविधा नहीं थी.
एक हीरो की एंट्री: नारायण मेघाजी लोखंडे
ऐसे में एक हीरो सामने आए, जिनका नाम था नारायण मेघाजी लोखंडे. उन्हें भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन का जनक भी कहा जाता है. उन्होंने मज़दूरों की इस पीड़ा को समझा और अंग्रेज़ों के सामने एक आवाज़ उठाई.
उन्होंने कहा, “हफ़्ते में छह दिन तक हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद, हर मज़दूर को एक दिन अपने लिए, अपने परिवार के लिए और समाज के लिए मिलना ही चाहिए.” उन्होंने यह भी तर्क दिया कि रविवार का दिन हिंदू देवता ‘खंडोबा’ का भी दिन है, इसलिए इस दिन छुट्टी होनी चाहिए.
आसान नहीं थी ये लड़ाई
अंग्रेज़ हुकूमत भला इतनी आसानी से कहाँ मानने वाली थी. उन्होंने लोखंडे जी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. लेकिन लोखंडे और हज़ारों मज़दूरों ने हार नहीं मानी. उन्होंने आंदोलन जारी रखा. यह संघर्ष एक-दो दिन या महीने नहीं, बल्कि पूरे 7 साल तक चला!
आख़िरकार, मज़दूरों की एकता और लोखंडे जी के अथक प्रयासों के आगे अंग्रेज़ सरकार को झुकना पड़ा.
और वो ऐतिहासिक दिन आया… 10 जून, 1890.
इसी दिन, ब्रिटिश हुकूमत ने आख़िरकार रविवार को सभी के लिए छुट्टी का दिन घोषित कर दिया.
तो अगली बार जब आप रविवार की छुट्टी का मज़ा लें, तो नारायण मेघाजी लोखंडे और उन हज़ारों गुमनाम मज़दूरों को ज़रूर याद कीजिएगा, जिनके लंबे संघर्ष ने हमें यह आरामदायक और सुकून भरा दिन तोहफ़े में दिया है.

