नई दिल्ली: भारत में वेश्यावृत्ति (Prostitution) का मुद्दा हमेशा से विवाद का विषय रहा है. यह न यह पूरी तरह वैध है और न ही पूरी तरह अवैध. लेकिन हाल ही में केरल हाई कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि कोठों पर जाकर यौन सेवाओं के लिए पैसे देने वाले लोगों को भी दोषी माना जा सकता है. हाई कोर्ट के जस्टिस वी जी अरुण ने साफ कहा कि सेक्स वर्कर को वस्तु की तरह नहीं देखा जा सकता. जो लोग कोठों पर जाकर पैसे देकर उनका शोषण करते हैं, वे सिर्फ “ग्राहक” नहीं बल्कि कानून की नजर में अपराधी हैं.
क्यों है यह फैसला अहम?
जज ने कहा कि ज्यादातर मामलों में सेक्स वर्कर मानव तस्करी के जरिए या मजबूरी में इस धंधे में धकेल दिए जाते हैं. उनके शरीर का इस्तेमाल दूसरों की ‘सुख-सुविधा’ पूरी करने के लिए कराया जाता है. ऐसे में पैसे देने वाला शख्स भी उन्हें इस काम के लिए उकसाता है.
क्या था मामला?
यह फैसला उस समय आया जब तिरुवनंतपुरम में एक पुलिस छापे के दौरान एक शख्स को सेक्स वर्कर के साथ पकड़ा गया. आरोपी ने कोर्ट में कहा कि वह सिर्फ सर्विस ले रहा था, लेकिन पुलिस ने उसे कई धाराओं में बुक किया.
कौन-कौन सी धाराएं लगीं?
पुलिस ने आरोपी पर अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 (ITP Act) की धारा 3, 4, 5(1)(d) और 7 के तहत केस दर्ज किया था. धारा 3 और 4 कोठा चलाने या वेश्यावृत्ति से कमाई पर आधारित हैं. धारा 5(1)(d) और 7 यौन सेवाएं लेने और सार्वजनिक स्थानों पर वेश्यावृत्ति से जुड़ी गतिविधियों को अपराध मानती हैं.
हाईकोर्ट ने आरोपी को धारा 3 और 4 से राहत तो दी, लेकिन 5(1)(d) और 7 के तहत कार्रवाई जारी रखने का आदेश दिया.
कोर्ट की बड़ी सीख
हाई कोर्ट ने साफ कहा कि पैसे देना किसी को ग्राहक नहीं बनाता, बल्कि यह यौन शोषण को बढ़ावा देने जैसा है. कोर्ट ने यह भी कहा कि असल में पैसे का बड़ा हिस्सा दलाल या कोठा संचालक को जाता है, जिससे सेक्स वर्कर और भी मजबूर हो जाती हैं.

