
नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के गठबंधन न करने से भारतीय जनता पार्टी (BJP) को दिल्ली विधानसभा चुनाव में निर्णायक जीत मिली, लेकिन इस चुनावी समर में हैदराबाद फैक्टर ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने कोई सीट नहीं जीती, लेकिन उसके दोनों उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे. एक सीट पर वोटों के विभाजन के कारण भाजपा को अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र में जीतने का मौका मिल गया.
AIMIM ने दिल्ली चुनाव में दो उम्मीदवार उतारे – ओखला से शिफा-उर-रहमान खान और मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन. दोनों ही उम्मीदवार 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में आरोपी हैं और फिलहाल जेल में बंद हैं. इसके बावजूद, AIMIM उम्मीदवारों ने कांग्रेस को चौथे स्थान पर धकेलते हुए तीसरा स्थान हासिल किया.
ओखला में वोटों का बंटवारा
ओखला में आम आदमी पार्टी के नेता और मौजूदा विधायक अमानतुल्लाह खान ने 23,639 वोटों से जीत दर्ज की. भाजपा के मनीष चौधरी दूसरे स्थान पर रहे, जबकि तिहाड़ जेल में बंद शिफा-उर-रहमान खान ने 39,558 वोट हासिल किए. कांग्रेस की आरिबा खान को सिर्फ 12,739 वोट मिले.
अल्पसंख्यक वोटों के विभाजन के बावजूद, तीन बार के विधायक अमानतुल्लाह खान अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे, लेकिन उनका जीत का अंतर 50,000 से अधिक वोटों से घट गया.
मुस्तफाबाद में बीजेपी की राह आसान
मुस्तफाबाद में मुकाबला और भी रोचक रहा. इस क्षेत्र में लगभग 40% मुस्लिम आबादी होने के बावजूद बीजेपी के मोहन सिंह बिष्ट ने 17,578 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. आम आदमी पार्टी के आदिल अहमद खान को 67,637 वोट मिले, जबकि AIMIM के ताहिर हुसैन ने 33,474 वोटों पर कब्जा किया. कांग्रेस के अली मेहदी को केवल 11,763 वोट मिले. AIMIM और कांग्रेस के उम्मीदवारों के कारण विपक्षी वोटों का विभाजन हुआ, जिससे भाजपा को आसानी से जीत हासिल हो गई.
चुनाव प्रचार में मिली अंतरिम जमानत
चुनाव प्रचार के दौरान AIMIM के दोनों उम्मीदवारों को प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दी गई थी. उन्होंने पार्टी प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी सहित कई नेताओं के साथ रोड शो किए और मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने की कोशिश की. हालांकि, यह रणनीति जीत में तब्दील नहीं हो सकी.
भाजपा के भीतर भी थी खींचतान
मुस्तफाबाद सीट पर भाजपा के भीतर भी एक दिलचस्प घटनाक्रम देखने को मिला. मोहन सिंह बिष्ट 1998 से 2015 तक करावल नगर के विधायक थे, लेकिन 2015 के चुनाव में आम आदमी पार्टी के कपिल मिश्रा ने उन्हें हरा दिया था. बाद में मिश्रा भाजपा में शामिल हो गए और 2020 में बिष्ट ने करावल नगर सीट वापस जीत ली. 2024 में भाजपा ने मिश्रा को करावल नगर से उम्मीदवार बनाया, जिससे बिष्ट नाराज हो गए. पार्टी ने उन्हें मनाने के लिए मुस्तफाबाद से टिकट दिया, और यह दांव भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुआ.
दिल्ली चुनाव में AIMIM को भले ही कोई सीट न मिली हो, लेकिन उसके उम्मीदवारों ने विपक्षी वोटों में सेंध लगाकर भाजपा की राह आसान कर दी. ओवैसी फैक्टर के कारण अल्पसंख्यक वोटों का बिखराव हुआ, जिससे भाजपा को उन क्षेत्रों में जीत हासिल करने का मौका मिला जहां आमतौर पर विपक्षी दल मजबूत माने जाते थे. यह चुनाव परिणाम दिखाता है कि भले ही AIMIM खुद को दिल्ली की राजनीति में स्थापित न कर सकी हो, लेकिन उसने अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को फायदा जरूर पहुंचाया.