बहुचर्चित हनी ट्रैप मामले में गठित एसआईटी में लगातार बदलाव को लेकर राज्य सरकार के जवाब से असंतुष्ट मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि अब आइंदा उसकी अनुमति के बिना SIT में कोई बदलाव नहीं किया जाए।
उच्च न्यायालय के इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति एससी शर्मा और न्यायमूर्ति शैलेंद्र शुक्ला की पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। बता दें कि इस याचिका में हाई प्रोफाइल सेक्स स्कैंडल की जांच को लेकर राज्य सरकार के रवैये पर सवाल उठाते हुए मामले की सीबीआई से जांच कराने की गुहार की गई है। अदालत ने कहा कि उसके सामने मामले में राज्य सरकार की ओर से विभिन्न आदेश पत्र सीलबंद लिफाफे में पेश किए गए हैं और एसआईटी प्रमुख ने सीलबंद लिफाफे में ही प्रकरण की स्थिति रिपोर्ट भी सौंपी है।
बता दें कि दस्तावेजों में वह सबूत नहीं है जिसके आधार पर इस मामले में SIT प्रमुख इतनी जल्दी बदले जायें। इंदौर पीठ ने राज्य सरकार को 15 दिन का समय देते हुए कहा कि वह मामले से जुड़े सारे दस्तावेज सीलबंद लिफाफे में सौंपे। इस समय में एसआईटी प्रमुख की ओर से मामले की ताजा रिपोर्ट और जनहित याचिका का “सही और उचित जवाब” भी पेश किया जाए।
अदालत ने कहा कि “मामले का इतिहास बताता है कि SIT के प्रमुख लगातार बदले गए हैं और अब इस जांच दल की कमान तीसरे आईपीएस अधिकारी को सौंपी गई है। युगल पीठ ने मामले के प्रभारी अधिकारी और इंदौर के पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी को निर्देश दिया कि वह मामले के सारे इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को जांच के लिए हैदराबाद की क्षेत्रीय अपराध विज्ञान प्रयोगशाला भेजें और इनकी प्रामाणिकता के बारे में इस इकाई से रिपोर्ट हासिल करें।
गौरतलब है कि नगर निगम के अधिकारी की शिकायत पर पुलिस ने 19 सितंबर को हनी ट्रैप गिरोह का खुलासा किया था। पांच महिलाओं और उनके ड्राइवर को भोपाल और इंदौर से गिरफ्तार किया गया था। इसका भंडाफोड़ होते ही मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आला राजनैतिक और कई अधिकारीयों के नाम सोशल मीडिया में उछाला गया था। मामले की जाँच चल रही है।