सरगुजा। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में एक दर्दनाक घटना सामने आई है, जहां लिव-इन रिलेशन में रह रही एक आदिवासी युवती ने अपने ही घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मामला प्रेमी द्वारा लगातार प्रताड़ित करने और मारपीट करने से जुड़ा है। पुलिस ने आरोपी प्रेमी को गिरफ्तार कर न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया है। यह घटना धौरपुर थाना क्षेत्र के सखौली गांव की है।
मिली जानकारी के अनुसार, सखौली निवासी रामदयाल दास और आदिवासी युवती बसंती सिंह (25) के बीच करीब 4 साल पहले प्रेम संबंध शुरू हुए थे। दोनों का रिश्ता धीरे-धीरे गहरा हुआ और करीब 3 साल पहले बसंती सिंह अपनी मर्जी से प्रेमी रामदयाल के घर चली गई। दोनों ने बिना शादी किए लिव-इन रिलेशन में रहना शुरू कर दिया और बसंती खुद को उसकी पत्नी मानकर साथ रहने लगी।
रिश्तों में बढ़ने लगी खटास
शुरुआत में सब कुछ सामान्य रहा, लेकिन समय बीतने के साथ दोनों के बीच विवाद बढ़ने लगे। पुलिस जांच में सामने आया कि रामदयाल दास ने युवती से दूरी बनाने के लिए उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। विवाद के दौरान वह बसंती सिंह के साथ मारपीट करता और उसे अपमानित करता था। 14 जुलाई 2025 को दिन के समय भी रामदयाल दास ने बसंती सिंह के साथ मारपीट की। इस घटना से आहत होकर बसंती ने घर में अकेले होने पर फांसी लगाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। जब यह बात परिजनों और आसपास के लोगों को पता चली, तो पुलिस को सूचना दी गई।
पुलिस जांच में हुआ खुलासा
धौरपुर थाना प्रभारी अश्वनी दीवान के अनुसार, जांच के दौरान मृतका के परिजनों और स्थानीय लोगों ने स्पष्ट बयान दिया कि रामदयाल दास युवती के साथ लगातार मारपीट करता था और मानसिक रूप से परेशान करता था। घटना वाले दिन भी उसने बसंती को पीटा था, जिसके बाद उसने आत्महत्या का कदम उठाया। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने आरोपी रामदयाल दास (27) के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बी.एन.एस.) की धारा 108 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2-ट) के तहत अपराध पंजीबद्ध किया। आरोपी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक रिमांड पर भेज दिया गया। यह मामला एक बार फिर लिव-इन रिलेशनशिप में बढ़ती जटिलताओं को उजागर करता है। भारतीय कानून में लिव-इन रिलेशन को मान्यता तो है, लेकिन ऐसे मामलों में पीड़िता के लिए न्याय पाना कभी-कभी चुनौतीपूर्ण होता है, खासकर जब मामला मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना से जुड़ा हो।

