बिलासपुर। : जहाँ एक ओर चिताएं जलती हैं, राख उड़ती है, हर कोना मौन और भय का प्रतीक लगता है। लेकिन इस माहौल के बीच अगर आपके कानों में माता की जय-जयकार गूंजे… महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग श्रद्धा से मत्था टेकते नजर आएं… तो समझ लीजिए, यह कोई आम जगह नहीं है। यह है श्मशान वासिनी माँ कालरात्रि का दरबार।नवरात्रि के दिनों में जब शहर के मंदिरों में आरती गूंजती है, घंटे बजते हैं – ठीक उसी समय सरकण्डा का यह मुक्तिधाम किसी तीर्थ से कम नहीं होता। फर्क बस इतना है कि यहाँ चिता की आग के बीच श्रद्धा की ज्योत जलती है।
विओ:- दिन ढलते ही जब श्मशान में सन्नाटा छा जाता है, तब माँ कालरात्रि के दरबार में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग – सब अपनी मन्नतें लेकर आते हैं और माँ के चरणों में झुककर मानो मृत्यु से जीवन मांगते हैं। करीब चार दशक पहले यह जगह वीरान और सुनसान थी। न मंदिर था, न श्रद्धा… बस राख, चिता और सन्नाटा। यहाँ नगर निगम के चौकीदार सुखदेव शेंडे अपनी पत्नी और बेटे के साथ नवरात्र पर माँ की पूजा किया करते थे।कहानी यहीं से शुरू होती है। जबलपुर से एक परिवार अपनी बेटी को लेकर यहाँ आया।

बताया जाता है कि उस बच्ची पर प्रेतबाधा थी। बाबा सुखदेव ने झाड़-फूंक की और आश्चर्यजनक घटना हुई। बच्ची के भीतर की आत्मा बोली – अब मैं यहीं वास करूंगी। बाबा ने श्मशान की परिक्रमा कराई। अंत में वह आत्मा एक अकोल के पेड़ के नीचे जा बैठी। तीन दिन बाद बच्ची बिल्कुल स्वस्थ होकर घर लौट गई।बाबा सुखदेव ने उसी जगह खुदाई कराई और वहीं से माँ कालरात्रि की स्वयंभू प्रतिमा प्रकट हो गई। तब से यह श्मशान श्रद्धा का धाम बन गया। यहाँ सुबह-शाम पूजा होती है और नवरात्रि में तो यह पूरा इलाका रोशनी से जगमगा उठता है।
माँ के मुख्य पुजारी सीताराम तिवारी बताते हैं – माँ कालरात्रि अपने दरबार में आने वाले किसी भी भक्त को खाली हाथ नहीं लौटातीं। नवरात्र के दिनों में यहाँ खास आयोजन होता है। एक तरफ चिताएं जल रही होती हैं, दूसरी तरफ भक्ति की लौ – यह अद्भुत संगम कहीं और नहीं मिलता।जहाँ कभी औरतें दिन में भी कदम रखने से डरती थीं,आज वहीं महिलाएं रात देर तक भजन गाती हैं, प्रसाद चढ़ाती हैं और अपनी संतानों की खुशहाली की मन्नत मांगती हैं।
यह सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि वह जगह है जहाँ मृत्यु के गर्भ से जन्म हुआ माँ के ऐसे रूप का, जो स्वयं मृत्यु को मात देती हैं। चिता की राख से उठती आरती और गूंजते जयकारे इस बात का प्रमाण हैं कि जहाँ सच्ची श्रद्धा होती है, वहाँ श्मशान भी तीर्थ बन जाता है।सरकण्डा मुक्तिधाम की यह कथा बताती है कि धर्म और आस्था किसी एक जगह तक सीमित नहीं – वह वहीं प्रकट होती है, जहाँ विश्वास होता है। नवरात्रि के इस पर्व पर जब अग्नि और भक्ति साथ जलते हैं, तब जन्म लेती है ऐसी परंपरा, जो मृत्यु को भी मोक्ष में बदल देती है।