रायपुर। CG NEWS: स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई जोश और जज्बे के साथ लड़ी गई थी। उसके पीछे सफलता या असफलता जैसा कोई भाव नहीं था। आजादी की लड़ाई में भाग लेना ही उस समय महत्वपूर्ण था। यह कथन है विधान सभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह का जो उन्होंने 3 अगस्त को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. परसराम सोनी की 105 जयंती के अवसर पर सोनी जी की रचित पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ में सशस्त्र संघर्ष रायपुर षडय़ंत्र केसÓ का विमोचन अपने निवास के सभाकक्ष में करते हुए व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि हर कोई यह जानता था कि एक पिस्तौल, कुछ गोलियों और दो-चार बम धमाकों से अंग्रेज भारत छोड़कर भागने वाला नहीं है। लेकिन युवकों ने जनता को जाग्रत करने के लिए सशस्त्र संघर्ष का मार्ग भी अपनाया और अपनी कुर्बानियां दे दी।
रायपुर में भी भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और रामप्रसाद ीिबस्मिल से प्रेरित युवकों की कमी नहीं थी उन्हीं में से थे परसराम सोनी जी और उनके साथी। उन्होंने अपने सीमित संसाधनों में भी हार न मानते हुए यथा संभव क्रांति को धरातल पर साकार करने का प्रयास किया था। बात दूसरी है कि उनका उद्देश्य पूरा न हो सका था। परंतु ब्रिटिश शासन को उनके प्रयासों ने झकझोर कर रख दिया था। आजादी की लड़ाई में सफलता या विफलता का कोई मतलब नहीं होता, उसमें सक्रिय रूप से भाग लेना ही महत्वपूर्ण था। यह कार्यक्रम हरि ठाकुर स्मारक संस्थान ने आयोजित किया था।
कार्यक्रम के मुख्य मुख्य वक्ता हिन्दी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष शशांक शर्मा ने कहा कि संसाधनों का अभाव चंद्रशेखर आजाद से लेकर परसराम सोनी तक बना रहा। आजाद के दल को काकोरी में ट्रेन से सरकारी खजाना और बैंक लूटना पड़ा था, जबकि परसराम जी को एक व्यापारी को लूटने की योजना बनानी पड़ी थी। शर्मा ने कहा कि सोनी जी ने दल के संगठन और साथियों के परस्पर परिचय में अत्यंत गोपनीयता का परिचय दिया था। यह पहले हुई गद्दारी की घटनाओं से सीख थी।
लेकिन सशस्त्र क्रांतियों की नियति शायद विश्वासघात ही होती है। सोनी जी के साथ भी मित्र ने गद्दारी की और क्रांति का जन्म न हो पाया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के संघर्ष में अगर और मगर नहीं होता, बल्कि निश्चित परिणाम होता है। श्री शर्मा ने कहा कि आत्मकथा तो अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने लिखी है पर जितनी स्पष्टता से रामप्रसाद बिस्मिल ने लिखा वैसा केवल परसराम सोनी की आत्म कथा ‘छत्तीसगढ़ में सशस्त्र क्रांति रायपुर षड़ंत्र केसÓ में देखने को मिलता है, मैं मुझे लगता है यह किताब बिस्मिल की आत्मथा के बराबर है।
कार्यक्रम में प्रो. लक्ष्मीशंकर निगम, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारीगण पी.एन. तिवारी, प्रभात मिश्र, एन.के.एस. ठाकुर, अखिलेश त्रिपाठी, राजेंद्र उमाठे, इतिहासविद आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र, प्रो. घनाराम साहू, डॉ. धीरेंद्र साव, संस्थान के सचिव आशीष सिंह सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक व सोनी जी के परिजन उपस्थित थे।