रायपुर। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में शुक्रवार को चातुर्मासिक प्रवचनमाला में परम पूज्य उपाध्याय भगवंत युवा मनीषी श्री मनीष सागरजी महाराज ने क्रोध को त्यागने की सीख दी। मुनिश्री ने कहा कि इच्छाएं ही क्रोध का कारण बनती है। इच्छाएं होती है तो अपेक्षाएं होती है। इच्छाएं ही दुख का कारण होती है। इच्छाओं को कम कर दें तो क्रोध नहीं होगा। क्रोध नहीं होगा तो हम असंयम में नहीं रहेंगे।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि क्रोध में अग्नि होती है। जैसे अग्नि दूसरे को जलाने के पूर्व पहले स्वयं को जलाती है। वैसे ही क्रोधी दूसरों पर क्रोध करने के साथ स्वयं का नुकसान करता है।अपने दोष अपनी दृष्टि में आ जाए तो दोष मिट सकते हैं। यदि दोष को दोष रूप में स्वीकार कर लेंगे तो ही यह संभव है। नकारात्मक सोच के लोग अपनी ही सोच से ही अशांत रहते हैं। क्रोध ऐसा करते हैं, जिससे शांति भंग हो जाती है। जीवन में दृढ़ संकल्प करें कि क्रोध नहीं करना है। उपाध्याय भगवंत ने कहा कि संयम ही हमारी ऊर्जा है। संयम ही हमारे जीवन का सर्वस्व होना चाहिए। ऐसा प्रयास करें कि संयम ही हमारी जीवनशैली बन जाए। मन को सही रखने के लिए संयम जरुरी है। मन की इच्छाओं का शमन संयम से ही होगा। मन को सुखी बनाने और संतुष्ट करने के लिए जो उचित हो, वही करना चाहिए। बच्चों को माता-पिता टोकते हैं, रोकते हैं तो वह संयमित और सुरक्षित रखने के लिए करते हैं। हमेशा अपने बड़ों की बात मानना चाहिए। नियम ही सुरक्षित रखने के लिए बनते हैं।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि संयम किसी एक चीज का त्याग नहीं है। संयम वास्तव में भीतर से शुरू होता है। मन से शुरू होकर बाहर तक आता है। मन,वचन, काया और व्यवहार का संयम जब हमारे जीवन में होना चाहिए। जहां संयम है, वहां सुरक्षा है। संयम से ही शरीर और आत्मा की सुरक्षा होगी। जहां संयम है,वहां संबंधों में मजबूती होती है। संयम के अभाव से ही संबंध टूट जाते हैं। जहां संयम है वहां संस्कार होते हैं। संयम के प्रति अनुराग होगा तो व्यक्ति संस्कारी होगा। संयम होगा वहां सम्मान होगा। उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जहां संयम है वहां संपत्ति है और संपत्ति की सुरक्षा भी है। जहां दादा ने कमाया और पोते ने गंवाया, वहां भोग बिलास के कारण सब नष्ट हो जाता है। जहां दादा ने कमाया और पोते ने बढ़ाया, वहां संयम ही है। संयम को अपनी जीवनशैली बना लो। देव,गुरु और धर्म को अपना मार्गदर्शन बनाएं। जिनका जीवन संयमित है उनसे संयम की ट्रेनिंग लो। संयम को अपनी घर गृहस्थी में भी अपना लो। सुरक्षा,संबंध संपत्ति,सम्मा, संस्कार ये सभी आपके सुरक्षा कवच बन जाएंगे। यही जीवन की रक्षा करेंगे।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि मन को पहले सुधारें। वास्तव में जो भीतर में इच्छाएं होती है, वही सबसे बड़ा असंयम है। किसी चीज की चाहत और उसे पाने के जुनून में कुछ भी मार्ग अपनाना ही असंयम की स्थितियां हैं। जिसने मन को जीत लिया, उसने जग को जीत लिया। मन को जीतने के लिए पहले मन को समझाना पड़ेगा। मन हमारी बात को ठुकराएगा लेकिन कुमान को समझ कर उसे सुमन करना होगा।
धर्मसभा में 27 और 31 उपवास की तपस्वियों का हुआ सम्मान
चातुर्मास समिति के अध्यक्ष श्यामसुंदर बैदमुथा ने बताया कि आज चातुर्मास का 1 माह पूर्ण हुआ। चातुर्मास में तपस्या का क्रम निरंतर जारी है। शुक्रवार को आत्मशोधन तप का 14 उपवास रहा। शुक्रवार को धर्मसभा में 27 उपवास की तपस्वी सुश्री शीतल कुमट पिता अभय कुमट टाटीबंध एवं 31 उपवास की तपस्वी मोहिनी देवी बैद का सम्मान किया गया। धर्मसभा में उपस्थित सभी ने तपस्या की खूब-खूब अनुमोदना की। परम पूज्य उपाध्याय भगवंत से तपस्वियों ने आशीर्वाद लिया। संघ ने तपस्वियों का बहुमान किया।

