राजधानी दिल्ली और कई बड़े राज्यों में डॉक्टरों या ऑप्टोमेट्रिस्ट की भारी कमी देखी गई है।
AIIMS survey: नई दिल्ली। भारत में बच्चे, युवा और बुजुर्गों की एक बहुत बड़ी आबादी रिफ्रेक्टिव एरर जैसे मायोपिया से लेकर सर्जिकल इलाज की जरूरत वाली गंभीर बीमारियों से जूझ रही है। आंखों के इलाज के लिए भले ही सरकारें कितने भी दावे करें और अभियान चलाएं लेकिन हाल ही में आए एम्स आरपी सेंटर के सबसे बड़े सर्वे ने देश में आंखों के इलाज की सुविधाओं पर चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। सर्वे रिपोर्ट में बड़ी संख्या में सिर्फ ग्रामीण इलाको में ही नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली और कई बड़े राज्यों में डॉक्टरों या ऑप्टोमेट्रिस्ट की भारी कमी देखी गई है।
एम्स के आरपी सेंटर फॉर ऑप्थेल्मिक साइंसेज नई दिल्ली ने भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, ऑल इंडिया ऑप्थेल्मोलॉजिकल सोसायटी, विजन 2020 इंडिया के साथ मिलकर सर्वे किया है। 2020-2021 के इस सर्वे की रिपोर्ट अब पेश की गई है। यह अपनी तरह का पहला सर्वे है। इसमें भारत में आंखों के इलाज के लिए मौजूद इन्फ्रास्ट्रक्चर और ह्यूमन रिसोर्स को लेकर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
देश में 70 फीसदी प्राइवेट आंखों के अस्पताल-
यह राष्ट्रीय सर्वे आरपी सेंटर के कम्यूनिटी ऑप्थेल्मोलॉजी प्रमुख डॉ. प्रवीण वशिष्ठ के नेतृत्व में किया गया. जिसमें देश में मौजूद 9440 संस्थानों में से 7901 आई केयर सेंटरों में आंखों के इलाज के लिए मौजूद इन्फ्रास्ट्रक्चर और डॉक्टरों-विशेषज्ञों की उपलब्धता और सुविधाओं का पूरा आंकड़ा लिया गया। इस सर्वे के मुताबिक देश में मौजूद आंखों के अस्पतालों में से 70 फीसदी आई केयर सेंटर प्राइवेट हैं। जबकि, महज 15.6 फीसदी सरकारी और 13.8 फीसदी एनजीओ संचालित कर रहे हैं।
सिर्फ 40 फीसदी में इमरजेंसी सेवाएं-
सर्वे रिपोर्ट बताती है कि कुल 7901 आंखों के अस्पतालों में से सिर्फ 40.5 फीसदी अस्पतालों में ही इमरजेंसी आई केयर सुविधा मौजूद है। 5.7 फीसदी के पास आई बैंक हैं और सिर्फ 28.3 फीसदी आई केयर सेंटर ही लो विजन रिहेबिलिटेशन की सुविधा मरीजों को देते हैं। वहीं बच्चों की आंखों की सर्जरी की बात करें तो सिर्फ 2180 सेंटरों पर ही बच्चों को जनरल एनेस्थीसिया देकर सर्जरी की सुविधा मिल रही है।

