प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)
भारत सरकार चरम मौसमी घटनाओं से निपटने के लिए क्लाइमेट पैरामीट्रिक बीमा पर विचार कर रही है. इनसे प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को सीधा भुगतान किया जाएगा. इस से सरकार का आर्थिक बोझ कम होने की उम्मीद है.जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में चरम मौसम घटनाएं भीषण रूप ले रही हैं. ऐसे में भारत जलवायु-आधारित बीमा योजना पर विचार कर रहा है. यह योजना जलवायु परिवर्तन से किसानों को होने वाले नुकसान को कवर करती है. इसके लिए सरकार ने देश की स्थानीय बीमा कंपनियों के साथ शुरुआती स्तर पर बातचीत भी शुरू कर दी है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक यह योजना पैरामीट्रिक मॉडल पर आधारित होगी. यह एक प्रकार का बीमा मॉडल है. इसमें कुछ पूर्व निर्धारित पैरामीटर होते हैं जैसे हवा की गति, तापमान, भूकंप की तीव्रता आदि. यानी अगर हवा, एक निर्धारित गति से ज्यादा तेज चली या एक निर्धारित आंकड़े से ज्यादा बारिश हुई तो बीमा धारक को हुए नुकसान का आकलन किए बिना बीमा भुगतान कर दिया जाता है.
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भारतीय साधारण बीमा निगम के पूर्व अध्यक्ष रामास्वामी नारायणन ने बताया है कि जलवायु घटनाओं की तीव्रता बढ़ गई है और इसी आधार पर सरकार के साथ यह चर्चा शुरू हुई है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, वित्त मंत्रालय, भारतीय साधारण बीमा निगम और अन्य प्रमुख बीमा कंपनियों के बीच कवरेज विकल्पों और वित्तीय व्यवस्था पर बातचीत चल रही है. हालांकि अभी इसका कोई औपचारिक प्रस्ताव तैयार नहीं हुआ है. लेकिन ऐसी बीमा योजनाओं के विकल्प दुनिया के कई देशों में मौजूद हैं.
साल 2007 में 16 कैरेबियन देशों के संयुक्त प्रयास से कैरेबियन कैटस्ट्रॉफी रिस्क इंश्योरेंस फैसिलिटी (सीसीआरआईएफ) बीमा लागू किया गया था. यह दुनिया की पहली सार्वजनिक क्षेत्र की पैरामीट्रिक बीमा सुविधा है. कैरेबियन देशों जैसे जमैका को तूफान और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है. राहत कार्य और पुनर्निर्माण में सरकार का काफी समय और पैसा लगता है. इस मॉडल के तहत प्राकृतिक आपदा के कुछ पैरामीटर जैसे तूफान के दौरान हवा की गति, बारिश और भूकंप की तीव्रता तय किए गए हैं. साल 2021 में तूफान एल्सा ने जमैका में भारी तबाही मचाई थी. जमैका को सीसीआरआईएफ से तुरंत 3.5 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता मिली. यह भुगतान 14 दिन के भीतर कर दिया गया था.
भारत में क्यों है इसकी जरुरत?
भारत में जलवायु परिवर्तन की स्थिति गंभीर होती जा रही है. विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2024 में करीब 88 फीसदी दिन में कहीं ना कहीं चरम मौसमी घटनाएं दर्ज की गई. यानी 366 में से 322 दिन देश के किसी ना किसी हिस्से में चरम मौसमी स्थिति देखने को मिली. यह आंकड़ा साल 2023 में 318 दिन और साल 2022 में 314 दिन था.
देश में साल 2023 और 2024 में रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी पड़ी. आईएमडी के अनुसार हीटवेव वाले दिनों की संख्या पिछले 30 वर्षों में दोगुनी हुई है. उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और ओडिशा सबसे प्रभावित राज्य रहे. यहां कई इलाकों में तापमान 47-49°C तक पहुंच गया. करीब 20 से 25 दिन यही तापमान दर्ज किया गया. इसी साल मानसून के दौरान पंजाब के कई जिलों में भारी बारिश हुई. इस दौरान लगभग 1,400 गांव प्रभावित हुए. करीब 2.5 लाख एकड़ से अधिक कृषि भूमि बाढ़ में डूब गई. ऐसी घटनाओं के चलते हर साल भारत में हजारों लोगों की मौत होती है.
क्या भारत में पहले से लागू है इस तरह की योजना?
भारत में फिलहाल मौसम आधारित फसल बीमा योजना लागू है. ये बीमा खाद्य फसलों जैसे अनाज, बाजरा और दालें, और वार्षिक बागवानी फसलों पर लागू होता है. यह योजना किसानों को अत्यधिक वर्षा, सूखा, तूफान, ओलावृष्टि, चक्रवात, प्राकृतिक आग और बिजली जैसी जलवायु आधारित घटनाओं से होने वाले नुकसान से सुरक्षा देती है. योजना राज्यों के चयनित जिलों और ब्लॉकों में लागू है. अभी 12 कंपनियां फसल बीमा प्रदान कर रही हैं.
मध्य प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपनिदेशक सौरभ सिंह बताते है कि भारत में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू है. भारत सरकार जलवायु परिवर्तन के कारण फसल नुकसान पर राहत राशि देने पर काफी ध्यान दे रही है. इसके लिए पहले से ही पैरामीटर या मानक तय कर लिए गए हैं.
सौरभ सिंह ने डीडब्लू को बताया, “सूखा और बाढ़ की वजह से फसल को नुकसान होता है. सभी राज्य सरकारें मौसम आधारित फसल बीमा योजना के तहत अत्यधिक गर्मी से हुए फसल नुकसान के लिए पैसा देती है. इसे ‘हीट कंपन्सेशन’ कहा जाता है. इसके अलावा राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष 2021 भी लागू है. बाढ़, भूकंप, महामारी और हीटवेव जैसी प्राकृतिक आपदाओं से तुरंत निपटने के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है. यह भारत में कुल आपदा राहत फंड का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा होता है.”
ऐसे में क्लाइमेट पैरामीट्रिक बीमा योजना सरकार के ऊपर कई तरह का बोझ कम कर सकती है. किसान या प्रभावित लोग बीमा कंपनियों से सीधा मुआवजा पा सकते हैं. इस मामले में सरकार पर पूरी निर्भरता नहीं रहती. किसानों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ते. सरकार को भी हर बार आपदा के बाद राहत राशि देने की जरुरत नहीं पड़ती. बीमा कंपनियां आर्थिक नुकसान की भरपाई कर देती हैं. ऐसे में सरकार आपदा के बाद बुनियादी सुविधाओं के नुकसान और जलवायु परिवर्तन पर अधिक ध्यान दे सकती है.
जबकि पारंपरिक बीमा में पहले नुकसान का सर्वेक्षण किया जाता है. पटवारी या कंपनी के लोग किसान के खेत खुद जाकर देखते हैं. निरीक्षण कर नुकसान का अनुमान लगाया जाता है. भुगतान की राशि आने में भी समय लगता है.
भारत में ऐसी ही कुछ अन्य पहलों के तहत अत्यधिक गर्मी से निपटने के लिए पहले ही बीमा की शुरुआत हो चुकी है. साल 2024 में अंतरराष्ट्रीय समाजसेवी संस्था ‘क्लाइमेट रेजिलिएंस फॉर ऑल’ ने भारत में महिलाओं के लिए काम करने वाली संस्था ‘सेल्फ-इंप्लॉयड विमेंस एसोसिएशन’ (सेवा) के साथ मिलकर तापमान बीमा की शुरुआत की थी. यदि तापमान लगातार दो दिनों तक 40 °C से अधिक चला गया तो बीमा का भुगतान स्वचालित रूप से हो जाएगा. इसके तहत राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के 22 जिलों में काम करने वाली 50,000 महिलाओं को अत्यधिक गर्मी पड़ने पर जलवायु-आधारित बीमा योजना का लाभ मिला.
कई देशों में पहले से हैं ऐसे इंश्योरेंस
पैरामीट्रिक बीमा या जलवायु-आधारित बीमा योजना पहले से ही कई देशों में लागू है. खासकर उन जगहों पर जो जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से बार-बार प्रभावित होते हैं. इसमें वर्ल्ड बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) भी मदद करता है. फिलीपींस एक ऐसा देश है जहां बाढ़, भूकंप और तूफान की घटनाएं होती हैं.
जलवायु परिवर्तन ने इसकी तीव्रता को और बढ़ा दिया है. किसानों और मछुआरों को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ता है. फिलीपींस ने साल 2017 में जलवायु‑संबंधित बीमा यानी पैरामेट्रिक कैटस्ट्रॉफी रिस्क इंश्योरेंस की शुरुआत की थी. इसके लिए वर्ल्ड बैंक और यूके अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग ने फिलीपींस की मदद की थी. बाढ़ या तूफान आने पर सीधे मोबाइल पेमेंट के जरिए भुगतान कर दिया जाता है.
मोजांबिक में भी सरकार अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, वर्ल्ड बैंक और अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक के साथ मिलकर काम करती है. बाढ़ और सूखे के जोखिम को कवर करने के लिए इसी तरह का बीमा उपलब्ध है. जानकर मानते हैं कि बढ़ते जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर इसी तरह की योजना की जरुरत भारत को भी है ताकि किसानों के साथ मछुआरों, छोटे कारोबारियों और ग्रामीणों को भी इसका लाभ मिल सके.

