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नई दिल्ली: भारत में महिलाओं की आत्महत्या के आंकड़े आपको डरा देंगे. National Crime Records Bureau (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 वर्षों (2014 से 2023) में 2.25 लाख गृहणियों ने आत्महत्या की. यानी हर दिन करीब 62 गृहणियां, और हर 24 मिनट में एक गृहणी अपनी जान दे रही है. यह आंकड़ा दिखाता है कि भारत में आत्महत्या से मरने वाली हर दूसरी महिला एक गृहणी होती है. देश में 2014 से 2023 के बीच कुल 14.6 लाख आत्महत्या के मामले दर्ज हुए, जिनमें से 4.36 लाख महिलाएं थीं. इनमें 2.25 लाख आत्महत्याएं गृहणियों ने कीं, जो किसी भी महिला वर्ग में सबसे अधिक है.
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सिर्फ 2023 में ही 46,648 महिलाओं ने आत्महत्या की, जिनमें से 24,048 गृहणियां थीं. गृहणियों के बाद दूसरा सबसे प्रभावित वर्ग 6,559 आत्महत्याओं के साथ छात्राओं का रहा.
आर्थिक और सामाजिक स्थिति ने बढ़ाया जोखिम
रिपोर्ट बताती है कि आत्महत्या करने वाली महिलाओं में से अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर और कम पढ़ी-लिखी थीं.
- 34,998 महिलाओं की सालाना आय 1 लाख रुपये से कम थी.
- 32,695 महिलाएं सिर्फ 10वीं तक या उससे कम पढ़ी थीं.
- वहीं सिर्फ 203 महिलाओं के पास प्रोफेशनल डिग्री थी.
- सामाजिक स्थिति के अनुसार 29,931 महिलाएं शादीशुदा थीं. 13,667 अविवाहित, 936 विधवा, 266 अलग रह रहीं और 343 तलाकशुदा थीं.
यह साफ दिखाता है कि आर्थिक और सामाजिक दबाव इन महिलाओं की मानसिक स्थिति को गहराई से प्रभावित कर रहा है.
सबसे ज्यादा आत्महत्याएं इन राज्यों में
2023 में गृहणियों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले इन राज्यों में दर्ज हुए:
- तमिलनाडु- 3,080 मामले
- मध्य प्रदेश- 2,637 मामले
- महाराष्ट्र- 2,373 मामले
- यानी हर दिन देश में मरने वाली 66 गृहणियों में से 21 सिर्फ इन तीन राज्यों से आती थीं.
बढ़ती संख्या और स्थिर ट्रेंड एक चेतावनी
2014 में जहां 47% महिला आत्महत्या करने वाली गृहणियां थीं, वहीं 2023 में यह बढ़कर 52% हो गया. गृहणियों की आत्महत्या की संख्या 2014 में 20,148 थी, जो 2023 में बढ़कर 24,048 हो गई. यानी 20% की बढ़ोतरी. 2020 के बाद आत्महत्या के कुल मामलों में तेजी आई, लेकिन गृहणियों की आत्महत्या की रेखा एक स्थिर संकट की तरह बनी रही न घटती और न ही खत्म होती.
घर की चार दीवारों में छिपी उदासी
महिलाओं की सुरक्षा पर चर्चा अक्सर बाहर की सड़कों और कार्यस्थलों पर केंद्रित रहती है, लेकिन NCRB का डेटा दिखाता है कि गृहणियों के लिए सबसे असुरक्षित जगह वही घर हो सकता है, जिसे उनका सुरक्षित ठिकाना माना जाता है. कई कानूनों और योजनाओं के बावजूद गृहणियों की आत्महत्या के मामलों में कोई ठोस गिरावट नहीं आई है.
अब जरूरी है संवाद और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान
विशेषज्ञों का मानना है कि गृहणियों की मानसिक सेहत पर बात करना और उन्हें सामाजिक-आर्थिक रूप से मजबूत बनाना बेहद जरूरी है.
- मानसिक स्वास्थ्य पर खुले में बातचीत
- काउंसलिंग और सपोर्ट सिस्टम
- घरेलू हिंसा और शोषण के खिलाफ सख्त कार्रवाई
- आर्थिक आत्मनिर्भरता के अवसर
गृहणियों की आत्महत्या के ये आंकड़े किसी संख्या भर नहीं, बल्कि लाखों टूटे हुए सपनों और अनकहे दर्द की कहानी कहते हैं.

