प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)
भारत में अपराध के आंकड़े जारी किए गए हैं. महिलाओं के प्रति अपराध के मामले में दिल्ली फिर से सभी महानगरों में सबसे ऊपर है.भारतीय महानगरों में महिलाओं के प्रति अपराध के मामले बढ़ रहे हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. भारत में महिला सुरक्षा की स्थिति बेहतर होने की जगह पटना, पुणे और बेंगलुरु जैसे शहरों में बलात्कार, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा, और साइबर उत्पीड़न जैसे मामलों की संख्या में इजाफा हुआ है.
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में भारत के 19 महानगरों में महिलाओं के खिलाफ कुल 51,393 मामले दर्ज किए गए. साल 2022 में दर्ज 48,755 मामलों की तुलना में ये 5.4 फीसदी ज्यादा हैं.
डेटा के अनुसार, 19 महानगरों में महिलाओं के खिलाफ दर्ज अपराधों में सबसे अधिक केस पति या उनके रिश्तेदारों की तरफ से की गई प्रताड़ना से संबंधित रहे. ऐसे कुल 15,813 मामले दर्ज किए गए. कुल मामलों में इनका हिस्सा 30.8 फीसदी है. महिलाओं के अपहरण के 10,532 मामले दर्ज हुए हैं. बड़ी संख्या में नाबालिग लड़कियां भी शहरी अपराधों की शिकार हुई हैं. ऐसे मामलों में पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध के कुल 7,305 मामले रजिस्टर किए गए.
दिल्ली से ज्यादा मुंबई सुरक्षित लगता है महिलाओं को
पूरे भारत की बात की जाए, तो देश में महिलाओं के खिलाफ कुल 4,48,211 आपराधिक मामले दर्ज किए गए. साल 2022 की तुलना में यह 0.7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्शाता है.
दिल्ली ही रहा सबसे असुरक्षित शहर
दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 5.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. इसके बावजूद, भारत की राजधानी ने लगातार तीसरे वर्ष महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित ‘मेगा सिटी’ होने का स्थान बरकरार रखा है. वर्ष 2023 में दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 13,366 मामले दर्ज किए गए, जो कि देश के अन्य बड़े महानगरों की तुलना में काफी अधिक हैं. इनमें बलात्कार, उत्पीड़न, छेड़छाड़, दहेज प्रताड़ना और दहेज हत्या जैसे मामले शामिल हैं.
दिल्ली की रहने वाली दीपाली टोंक सोशल सेक्टर में काम कर रही हैं. शाम 6 बजते ही वह घर वापस लौटने को बेचैन रहती हैं. दीपाली डीडब्लू से बातचीत में बताती हैं, “दिल्ली में महिला की सुरक्षा उसकी खुद की जिम्मेदारी है. मैं एक एनजीओ में काम करती हूं. कई दफा हमें रात को सामुदायिक जागरूकता या कैम्पेन के लिए अनजान जगहों पर जाना पड़ता है. ऐसे में मैं किसी महिला साथी को साथ ले जाती हूं.”
बुनियादी कमियों को रेखांकित करते हुए वह बताती हैं, “मैंने देखा है कि सुनसान इलाकों में पुलिस नहीं होती. इसलिए मैं कोशिश करती हूं कि अपने आप ही समय से घर पहुंच जाऊं. सुनसान रास्तों, बस स्टैंड और मेट्रो स्टेशन के बाहर कोई स्ट्रीट लाइट भी नहीं होती. इसलिए मैं हर दिन यह सोचकर काम खत्म करती हूं कि 8 बजे से पहले घर पहुंचना जरूरी है, ताकि किसी अनहोनी से बचा जा सके.”
सोनाली ने अपना एक अनुभव भी साझा किया, “पिछले साल अप्रैल में एक मार्केट में मेरा मोबाइल चोरी हो गया था. जब मैं थाने में शिकायत दर्ज कराने गई, तो पुलिसकर्मियों ने ना केवल शिकायत को हल्के में लिया, बल्कि बदतमीजी से बात भी की.”
क्या यूनिवर्सिटी कैंपस में भी छात्राएं सुरक्षित नहीं
दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को लेकर भी दीपाली का अनुभव अच्छा नहीं रहा है. दिल्ली में कई महिलाओं की शिकायत है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम इस तरह से डिजाइन नहीं हैं कि ज्यादा सामान लेकर आसानी से यात्रा की जा सके. ऐसे में उन्हें मजबूरी में ओला या उबर जैसी महंगी टैक्सी सेवाएं लेनी पड़ती हैं. हालांकि, उसकी भी अपनी मुश्किलें हैं. जैसा कि दीपाली बताती हैं, “दिल्ली में ट्रैफिक जाम एक आम समस्या है, जिससे घर पहुंचने में देर हो जाती है. कई बार टैक्सी ड्राइवर भी परेशानी खड़ी करते हैं. वे ड्रॉप लोकेशन तक ठीक से नहीं ले जाते या बीच रास्ते में बहस करने लगते हैं.”
मुंबई और बेंगलुरु में भी बढ़ा अपराध
महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में दिल्ली के बाद मुंबई (6,025) और बेंगलुरु (4,870) में सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए. हालांकि, मुंबई और बेंगलुरु दोनों को मिलाकर भी दिल्ली में दर्ज हुए अपराधों की संख्या कहीं अधिक हैं. जबकि कोयंबटूर में 244, कोजीकोडे में 627 और चेन्नई में 745 मामले दर्ज हुए.
स्वाति, मुंबई स्थित ‘वन स्टॉप सेंटर’ में काम करती हैं. यह महिलाओं के खिलाफ हिंसा, उत्पीड़न और शोषण के मामलों में पीड़ितों को सभी जरूरी सहायता एक ही जगह पर उपलब्ध कराता है. स्वाति ने डीडब्ल्यू से बातचीत में बताया कि उन्हें हर दिन कई कॉल्स आती हैं, जिनमें से करीब 40 फीसदी घरेलू हिंसा से जुड़ी होती हैं.
स्वाति बताती हैं, “सेंटर की ओर से पहले पीड़ित महिला को काउंसलिंग दी जाती है. उसके बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के लिए कानूनी मदद उपलब्ध कराई जाती है. हालांकि, इनमें से केवल चार या पांच महिलाएं ही आगे बढ़कर पुलिस में शिकायत दर्ज कराती हैं, क्योंकि अधिकांश महिलाएं पति या उसके परिवार से रिश्ता खत्म होने के डर से पीछे हट जाती हैं.”
हालांकि, स्वाति इस ओर भी ध्यान दिलाती हैं कि शहरों की तुलना में मुंबई की पुलिस काफी सक्रिय है और महिलाओं से जुड़े मामलों में तुरंत कार्रवाई करती है. साथ ही, हर बस्ती में एक ‘निर्भया वैन’ भी तैनात रहती है, जो आपात स्थिति में तुरंत मदद पहुंचाती है.
भारत: क्या डे-केयर में भी सुरक्षित नहीं बच्चे
नाबालिग लड़कियों के साथ बढ़ते यौन उत्पीड़न के मामलों पर ‘प्रगतिशील महिला संगठन’ की सचिव पूनम कौशिक ने डीडब्ल्यू को बताया, “भारत में अभी भी क्रेच (बाल देखभाल केंद्र) की समुचित व्यवस्था नहीं है. इसकी वजह से कामकाजी महिलाएं अपनी छोटी बच्चियों को या तो घर पर अकेला छोड़ देती हैं या किसी रिश्तेदार के भरोसे छोड़ने को मजबूर होती हैं. ऐसे हालात में जब बच्ची, मां की गैरमौजूदगी में अकेली होती है, तो कई बार लोग उसका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं. यह एक बेहद गंभीर चिंता का विषय है, जिसपर सरकार को तुरंत ध्यान देने और ठोस कदम उठाने की जरूरत है.”
अर्बन-प्लानिंग से दूर रहती हैं महिलाएं
नूरजहां दिल्ली के सीमापुरी इलाके की एक झुग्गी बस्ती में रहती हैं. वह बताती हैं कि उनके इलाके में 100 से ज्यादा झुग्गियां हैं, लेकिन सार्वजनिक शौचालय सिर्फ एक है. वो भी अक्सर बंद रहता है. कई बार टॉयलेट बंद रहने का कारण यह बताया जाता है कि सफाई कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला, इसलिए वे काम नहीं करते.
नूर डीडब्ल्यू को बताती हैं, “जब टॉयलेट खुलता भी है, तो उसमें या तो पानी नहीं होता या गंदगी का अंबार लगा होता है. रात के समय शौच के लिए बाहर जाना हो, तो किसी महिला को साथ ले जाना पड़ता है, क्योंकि शौचालय झुग्गी से दूर है. कभी-कभी हालात इतने खराब हो जाते हैं कि लोगों को अपने दरवाजे के बाहर नालियों में ही शौच करना पड़ता है. रात के सन्नाटे में चोरी, हिंसा और उत्पीड़न का डर लगा रहता है.”
शोध: महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर सुरक्षा में गंभीर खामियां मौजूद
सार्वजनिक परिवहन के बाबत उन्होंने अपना अनुभव बताया, “लोग कहते हैं कि दिल्ली में महिलाओं के लिए बसें फ्री हैं. हकीकत ये है कि सबसे ज्यादा हिंसा और उत्पीड़न हमें इन्हीं बसों में झेलना पड़ता है. मैं कूड़ा बीनने का काम करती हूं. मेरी हालत देखकर अक्सर पुरुषों को लगता है कि वे मुझे कहीं भी छू सकते हैं. कई बार बस की भीड़ का फायदा उठाकर पुरुषों ने मुझे गलत तरीके से छुआ है, लेकिन भीड़ इतनी होती है कि यह समझना मुश्किल हो जाता है कि ऐसा करने वाला कौन था. ऐसे में शिकायत करना भी बेकार लगता है, क्योंकि कोई सुनने वाला नहीं होता.”
सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में हमने अर्बन स्पेस और महिला मुद्दों पर काम करने वाली मोहिनी सिंह से बात की. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन सेटेलमेंट में रिसर्चर मोहिनी बताती हैं, “शहरों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के पीछे दो बड़े कारण हैं. एक तरफ यह पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा है, तो दूसरी ओर यह शहरी नियोजन से भी गहराई से जुड़ा हुआ है.”
मोहिनी आगे बताती हैं, “आज शहरों का विस्तार बेहद तेजी और बेतरतीब ढंग से हो रहा है. इस प्रक्रिया में आस-पास के कई ऐसे गांवों को भी शहरी सीमा में शामिल कर लिया गया है, जो अब तक सांस्कृतिक रूप से विकसित नहीं हो पाए हैं. ऐसे क्षेत्रों से आने वाले लोगों के लिए शहरों का खुलापन और विविधता एक प्रकार का सांस्कृतिक सदमा बन जाती है. इस असंतुलन के कारण उनमें कई बार आक्रोश और हिंसा जन्म लेती है, जिसका सीधा असर सबसे पहले महिलाओं पर पड़ता है.”
सुप्रीम कोर्ट ने कब-कब पलटे महिलाओं से जुड़े विवादित फैसले
शहरी योजना में सुधार की जरूरत पर जोर देते हुए वह कहती हैं, “जब हम शहरों की योजना बनाते हैं, तो अक्सर बुनियादी अवसंरचना की जरूरतों की अनदेखी कर देते हैं. उदाहरण के तौर पर, सड़कों को सिर्फ कारों की आवाजाही के हिसाब से बनाया जा रहा है. जबकि, उन्हीं सड़कों पर सबसे ज्यादा महिलाएं पैदल चलती हैं. जैसे कि बच्चे स्कूल ले जाते हुए, सब्जी मंडी या बाजार जाते हुए. इन रास्तों में अक्सर सुनसान गलियां होती हैं, जहां न तो पर्याप्त स्ट्रीट लाइट हैं और न ही कोई सुरक्षित सार्वजनिक स्थान. महिलाओं के लिए रुकने, बैठने या आराम करने की जगहें नहीं होतीं. अगर कोई महिला थोड़ी देर पार्क में बैठना भी चाहे, तो उसके मन में यह डर रहता है कि कहीं कोई छेड़खानी ना हो जाए, या वहां टॉयलेट की सुविधा होगी भी या नहीं.”
मोहिनी के मुताबिक, ये सभी पक्ष महिलाओं के लिए सड़कों और सार्वजनिक जगहों को असुरक्षित बना देती हैं. वह इसका कारण यह मानती हैं कि शहर की प्लानिंग के दौरान महिलाओं की जरूरतों के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा जाता. मोहिनी इसे ही असल चूक मानती हैं.

