एक भारतीय इंसान ने टैरिफ वाले ट्रंप को हरा दिया. आज आपको ये जरूर जानना चाहिए कि जिस ट्रंप से भारत समेत पूरी दुनिया परेशान है, उन्हें उन्हीं के देश में हराने वाला व्यक्ति कौन है? ऐसा क्या हुआ कि बाइडेन को हराने वाले ट्रंप भारतीय मूल के एक इंसान से कैसे हार गए. सबसे पहले आप खबर समझिए. अमेरिका की अदालत में टैरिफ को लेकर ट्रंप के खिलाफ एक याचिका डाली गई. अमेरिकी अदालत ने सुनवाई के दौरान साफ कर दिया कि टैरिफ लगाने का अधिकार ट्रंप को नहीं है. सबसे खास बात ये है कि ट्रंप को टैरिफ पर अदालत से जो झटका लगा है, उसमें एक भारतीय मूल के व्यक्ति की खास भूमिका रही है.
‘कोर्ट में कर दिया चित’
भारतीय मूल के वकील नील कत्याल की दलीलों के आगे ट्रंप प्रशासन की दलीलें खोखली साबित हुईं. नील कत्याल ने अदालत में साबित कर दिया कि ट्रंप को टैरिफ लगाने का कोई अधिकार नहीं है और उन्होंने मनमाने ढंग से ये टैरिफ लगाया है.
यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द फेडरल सर्किट ने 7-4 के बहुमत से दिए फैसले में ट्रंप के टैरिफ को अमेरिकी कानून के खिलाफ बता दिया है. जब ट्रंप प्रशासन ने टैरिफ लगाना शुरू किया तो उसने 1977 के एक कानून, इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट यानी IEEPA का इस्तेमाल करते हुए कहा था कि व्यापार घाटे की वजह से देश में आर्थिक आपातकाल की स्थिति बन गई है. इसी को आधार बनाकर विदेशी आयात पर टैरिफ लगाया गया था. लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में ट्रंप की इस दलील को खारिज कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि टैरिफ लगाने का अधिकार सिर्फ संसद के पास है और IEEPA का इस्तेमाल टैरिफ लगाने के लिए नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने टैरिफ को अमेरिकी कानून के ख़िलाफ़ और अमान्य बताया. वैसे अपील कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उसकी एक खास बात ये है कि अदालत में ट्रंप के फैसले के खिलाफ दलील पेश करने वाले मुख्य वकील भारतीय मूल के हैं. नील कात्याल ने अपने तर्कों से टैरिफ के मुद्दे पर ट्रंप प्रशासन को चित कर दिया.
55 साल के नील कात्याल अमेरिका के प्रतिष्ठित वकील और कानूनी विद्वान हैं. उनके पिता, सुरेंदर कात्याल इंजीनियर थे और उनकी मां प्रतिभा कात्याल डॉक्टर थीं. नील कात्याल का कानूनी करियर काफी अच्छा रहा है. ओबामा प्रशासन के दौरान कात्याल अमेरिका के कार्यवाहक सॉलिसिटर जनरल के पद पर काम कर चुके हैं, जो अमेरिकी सरकार का एक वरिष्ठ कानूनी पद होता है. कात्याल को ट्रंप विरोधी माना जाता है. हालांकि उनके लॉ फर्म मिलबैंक LLP ने अप्रैल 2025 में कानूनी सेवा देने के बदले ट्रंप प्रशासन के साथ 100 मिलियन डॉलर का समझौता किया था जिसको लेकर लोगों ने सवाल भी उठाए. लेकिन इसके बावजूद टैरिफ के मामले में नील कात्याल ने ट्रंप प्रशासन के ख़िलाफ़ केस लड़ने का फैसला किया.
कात्याल ने कोर्ट में ये दलील दी कि राष्ट्रपति को एकतरफा आर्थिक नीतियां तय करने का अधिकार नहीं है और ये अधिकार केवल जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों यानी संसद के पास है. अदालत ने इन तर्कों को स्वीकार करते हुए अपना फैसला सुनाया. अब जिस कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है उसके बारे में भी आपको जानकारी देते हैं.

