रायपुर। : छत्तीसगढ़ी सिनेमा की बहु चर्चित फिल्म दंतेला सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस फिल्म का इंतजार छत्तीसगढ़ के लोग बेसब्री से कर रहे थे। फिल्म के गाने और टीजर ने लोगों को काफी ज्यादा इंप्रेस किया था। नवा जमाना अऊ नवा सिनेमा को केंद्र में रखकर इस फिल्म का निर्माण किया गया था। जिससे लोगों को काफी ज्यादा उम्मीदें थी तो आईए जानते है कैसी है ये फिल्म…
दंतेला फिल्म की कहानी चरचरी गांव और पानी के इर्द-गिर्द बुनी हुई है। जिसमें तीन किरदार हमें प्रमुख रूप से दिखते हैं। पहला परसा राम ( विलेन) दूसरा भैरू ( हीरो) और तीसरा लक्ष्मी ( नायिका)। इन्हीं तीन को केंद्र में रखकर दंतेला की कहानी आगे बढ़ती है। परसा राम खुद को पानी का राजा कहता है और गांव वालों को पानी भरने के लिए केवल 15 मिनट का समय देता है। नायक और नायिका (Dantela Movie Review) इसका विरोध करते हैं तब फिल्म की असली कहानी शुरू होती है। फिर गुडें और हीरो की लड़ाई, गांव वालों की पीड़ा और दंतेला का खौफ समय समय दर्शकों को एंटरटेन करने का काम करती है। फिल्म में सस्पेंस और थ्रिल का भी तड़का लगाया गया है, जो कहीं-कहीं पर काम करता है और कहीं पर बेअसर रहता है।
दंतेला फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी इसका निर्देशन ही है। डॉ शातनु पाटनवार की बतौर डायरेक्टर यह पहली फिल्म है लेकिन उनका निर्देशन लोगों को बांध कर रखता है। कैमरा एंगल, बीजीएम और स्टोरी टेलिंग का तरीका दर्शकों को उनकी सीट से बांध कर रखता है। (Dantela Movie Review) फिल्म 3 घंटे 23 मिनट लंबी है। जिसे आसानी से काटने की जरूरत महसूस होती है। बाकि संगीत पक्ष अच्छा है। हीरो विलेने की एंट्री पर बैकग्राउंड में बजने वाला गाना अच्छा है। क्लाइमैक्स से कुछ मिनट पहले ‘काली आवत हे’ नाम का गाना भी आता है, जो एक अच्छा थियेटर एक्सपीरियंस दिलाने का काम करता है।
दंतेला के हीरो-हीरोईन और विलेन से लेकर सहायक कलाकारों ने स्क्रिप्ट के हिसाब से अच्छा काम किया है। राज दीवान विलेन के रोल में चमकते है। उनका किरदार, उनकी डॉयलाग डिलवरी और कई जगह वे हीरो पर भी भारी पड़ते है। एवरग्रीन विशाल ने पूरी फिल्म में अच्छा काम किया लेकिन क्लाइमैक्स में वे सबसे ज्यादा इंप्रेस करते है। राया डिंगोरिया और वीणा सेंद्रे ने परंपरागत छत्तीसगढ़ी फिल्मों से हटकर काम किया है, जो दंतेला को बाकी सभी छत्तीसगढ़ी फिल्मों से अलग बनाती है। लेकिन इन सारे कैरेक्टर्स पर अनिल सिन्हा का किरदार भारी पड़ता हुआ दिखाई देता है। उनके जितने भी सीन्स है वो काफी ज्यादा मजेदार है और सीरियस जोन में जाते हुई फिल्म में ताजगी लाने का काम करती है।
खामियां:- दंतेला की सबसे बड़ी खामी इसकी लंबाई है, जो मेकर्स और जनता दोनों को परेशान कर सकती है। 2 से 2:30 घंटे वाली फिल्म देखने वाली जनता को यह बोर सकती है क्योंकि दंतेला साढ़े तीन घंटे लंबी फिल्म है। दंतेला की डबिंग कहीं कहीं आपके कानों को खटकती है। कुछ जगह अनिल सिन्हा के कैरेक्टर की आवाज कम सुनाई देती है।
देखें या ना देखें:- अगर आप छत्तीसगढ़ी फिल्मों के फैन है तो ये फिल्म आपके लिए है। जिनको यूनिक फिल्म चाहिए उनको भी यह फिल्म कुछ हद तक पसंद आ सकती है।


