7/11 Mumbai Blast Case: 2006 में हुए 7/11 मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में नया मोड़ आ गया है. महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा सभी 12 आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. मंगलवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सामने इस मामले का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि यह “बेहद गंभीर मामला” है. इसे जल्द से जल्द सुना जाना चाहिए. सीजेआई ने भी इस पर सहमति जताई और मामले को बुधवार (23 जुलाई) को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया. उन्होंने यह भी कहा, “हमने पढ़ा है कि आठ आरोपी पहले ही रिहा हो चुके हैं.”
क्या है पूरा मामला?
बता दें कि 11 जुलाई 2006 को मुंबई की वेस्टर्न लाइन की लोकल ट्रेनों में सात सीरियल बम धमाके हुए थे, जिनमें 187 लोगों की मौत हुई थी और 800 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. इस केस में एक दशक लंबे ट्रायल के बाद साल 2015 में MCOCA कोर्ट ने पांच आरोपियों को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. लेकिन हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि “प्रॉसिक्यूशन आरोपों को शक से परे साबित करने में नाकाम रहा” और कई गवाहों की गवाही को अविश्वसनीय बताया.
कोर्ट का मानना था कि “इस केस में जो जांच हुई वह गंभीर खामियों से भरी थी और जनता को झूठा समाधान दिखाया गया, जबकि असली खतरा अभी भी बाहर घूम रहा है.”
HC ने जांच एजेंसियों पर उठाए सवाल
कोर्ट ने यह भी कहा कि जिन टैक्सी चालकों और यात्रियों ने आरोपियों की पहचान की, उनके बयानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता. क्योंकि घटना के 100 दिन बाद पहचान कराई गई थी. कोर्ट ने बरामद किए गए हथियारों, नक्शों और विस्फोटक सामग्री को भी “अप्रासंगिक” करार दिया क्योंकि जांच एजेंसियां यह तक नहीं बता पाईं कि बम का प्रकार क्या था.
अब सरकार सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले को पलटने की गुहार लगा रही है. इस केस ने एक बार फिर जांच एजेंसियों की कार्यशैली, ट्रायल में देरी और सबूतों की वैधता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

