UP News : उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा वर्ष 2024 में लागू किए गए गैरकानूनी धर्म परिवर्तन (संशोधन) विधेयक पर अब संवैधानिक संकट के बादल मंडराने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है और जवाब तलब किया है।
यह मामला उस समय सामने आया जब लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता रेखा वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि यह कानून विभिन्न धर्मों के बीच रिश्तों को बाधित करने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने का जरिया बन गया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस कानून की आड़ में निर्दोष लोगों को जबरन धर्मांतरण के आरोपों में फंसाया जा सकता है। साथ ही याचिकाकर्ता ने यह मांग भी की कि जब तक मामला लंबित है, तब तक इस कानून के तहत कोई कानूनी कार्रवाई न की जाए।
क्या है मामला
2024 में योगी सरकार ने 2020 में लागू ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम’ में संशोधन करते हुए लव जिहाद जैसे शब्दों को कानूनी भाषा में परिभाषित किया। संशोधित कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति धर्मांतरण के उद्देश्य से किसी महिला से विवाह करता है, या इसके लिए छल, दबाव, या साजिश करता है, तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा, जिसकी सजा 20 साल तक की जेल या आजीवन कारावास हो सकती है। इस संशोधन में यह स्पष्ट किया गया कि यदि धर्म परिवर्तन शादी के इरादे से किया गया है, तो वह “लव जिहाद” की श्रेणी में आएगा और कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पूर्व में लंबित समान प्रकृति की याचिकाओं के साथ जोड़ते हुए संकेत दिया है कि अब यूपी के धर्मांतरण कानून पर व्यापक संवैधानिक सुनवाई हो सकती है। कोर्ट के नोटिस के बाद अब राज्य सरकार के जवाब का इंतजार है। अभी तक यूपी सरकार या भाजपा की ओर से इस मामले में कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
योगी सरकार ने 2020 में यह कानून लव जिहाद और जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने के उद्देश्य से लागू किया था। इसे बाद में 2024 में और सख्त बना दिया गया। भाजपा सरकार का यह रुख लंबे समय से विवादों में रहा है। कानून लागू होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे एक मजबूत सामाजिक संदेश बताया था।

