गिरिश गुप्ता गरियाबंद:- जिले में एक बार फिर मीडिया की सजगता और प्रशासन की तत्परता ने मजबूर को उसका हक दिलाया है। कल दिनभर भूख हड़ताल पर बैठे मुरहा नागेश और उसके परिवार को आखिरकार आज साढ़े सात एकड़ पुश्तैनी जमीन पर कब्जा मिल गया। प्रशासन की टीम—एसडीएम डॉ. तुलसीदास मरकाम, तहसीलदार और पुलिस बल की मौजूदगी में मुरहा नागेश ने खुद अपने खेत में बुआई कर जमीन पर दोबारा अधिकार मिल पाया।
कल लगभग 12 घंटे गरियाबंद कलेक्ट्रेट के सामने धरने पर बैठे नागेश परिवार ने आत्मदाह की चेतावनी दी थी, जिसके बाद सरकारी तंत्र हरकत में आया। क्या इस देश में अपने हक के लिए भी नागरिकों को भूख हड़ताल करनी पड़ेगी? अगर मीडिया ने इस मुद्दे को दिनभर प्रमुखता से नहीं उठाया होता, तो क्या नागेश परिवार को उसका अधिकार मिल पाता?
कब्जा दिलाने के दौरान जब मुरहा का ट्रैक्टर कब्जा करने वाले मोतीलाल का बुआई किया गया मक्का के ऊपर चल रहा था,उसी वक्त मोतीलाल यादव के परिवार की एक महिला ट्रैक्टर के आगे आ गई। लेकिन प्रशासन की सूझबूझ और संयम से स्थिति संभाल ली गई। खुद एसडीएम डॉ. मरकाम मौके पर मौजूद रहे और मुरहा को भरोसा दिलाया कि भविष्य में किसी भी हालत में उसकी जमीन पर अवैध कब्जा नहीं होने दिया जाएगा।
एसडीएम ने यह भी आश्वासन दिया कि पूरे गांव का राजस्व रिकॉर्ड दुरुस्त किया जाएगा और जल्द ही मुरहा को उसकी जमीन का कागजी अधिकार भी सौंपा जाएगा। इस दौरान गांव के सरपंच समेत कई जनप्रतिनिधि मौके पर मौजूद रहे और मुरहा के पक्ष में खड़े रहे।
मीडिया की भूमिका बनी निर्णायक
नागेश परिवार ने मीडिया को खुलकर धन्यवाद दिया। उनका कहना था कि अगर मीडिया ने उनकी आवाज़ न उठाई होती, तो शायद सरकार और प्रशासन यूं नहीं जागते। यह घटना एक बार फिर यह साबित करती है कि लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका कितनी अहम है।
यह पूरी घटना, व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है—जिसमें मजबूर परिवार को अपने ही पुश्तैनी हक के लिए सड़क पर उतरना पड़ा, आत्मदाह की चेतावनी देनी पड़ी, तब जाकर प्रशासन हरकत में आया और मुरहा नागेश को उसकी पुस्तैनी जमीन पर कब्जा दिलवाया।

