पूरे देश में छत्तीसगढ़ ही एक ऐसा राज्य है, जहां किसी वनक्षेत्र में बाघ रेस्क्यू किए जाने पर अपने पड़ोसी राज्य या किसी दूसरे राज्य से रेडियो कॉलर उधारी में मांगना पड़ता है। बता दें कि जंगल सफारी प्रबंधन ने छह माह पूर्व रेडियो कॉलर के लिए टेंडर जारी किया था, लेकिन अब तक रेडियो कॉलर खरीदी करने की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई है। बाघ शेड्यूल-1 प्रजाति के वन्यजीव है।
गौरतलब है कि बाघ को रेस्क्यू करने के बाद जंगल में छोड़े जाने और रिहायशी क्षेत्र में उसके विचरण करने की स्थिति में नियम के मुताबिक रेडियो कॉलर लगाना जरूरी होता है। इससे बाघ की सुरक्षा के साथ उसकी नियमित मॉनिटरिंग होती है। बाघ जैसे संवेदनशील मामले में वन विभाग के अफसरों द्वारा रेडियो कॉलर नहीं खरीद पाना गंभीर लापरवाही है।
पिछले साल मनेंद्रगढ़ से एक घायल बाघिन का जंगल सफारी में उपचार कराने के बाद अचानकमार टाइगर रिजर्व में रिलिज किया गया। बाघिन के लिए एटीआर ने उधारी में रेडियो कॉलर लिया था। बताया जा रहा है यह रेडियो कॉलर एटीआर प्रबंधन ने डब्लूआईआई, देहरादून की मदद से हासिल किया था। इसी तरह से कोरिया में विचरण कर रहे बाघिन को मध्यप्रदेश से उधारी में रेडियो कॉलर लाकर लगाया गया था। इसी तरह से बारनवापारा से रेस्क्यू बाघ को भी उधारी में रेडियो कॉलर लगाकर छोड़ा गया है।
पीसीसीएफ वन्यजीव प्रबंधन योजना एवं इको टूरिज्म प्रेम कुमार ने मीडिया को बताया कि,बाघ के लिए रेडियो कॉलर लगाने टेंडर जारी किया गया है, अभी प्रक्रिया कहां अटकी हुई है, इसकी जानकारी जुटाकर जल्द ही रेडियो कॉलर की खरीदी की जाएगी। बाघों के लिए छह से सात रेडियो कॉलर खरीदे जाएंगे। पूर्व में जहां से रेडियो कॉलर लाकर लगाया गया था, उन्हें वापस किया जाएगा।
बता दें कि उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के साथ धमतरी, कांकेर सहित कई ऐसे वनक्षेत्र हैं जहां तेंदुआ शिकार की तलाश में रिहायशी क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है। इनमें से कई तेंदुआ को मौके पर ही रेस्क्यू कर दूसरी जगह जंगल में ले जाकर छोड़ दिया जाता है। कई तेंदुआ ऐसे होते हैं, जो वापस अपने पुरानी जगह लौट कर वापस आ जाते हैं। ऐसी स्थिति में जरूरत पड़ने पर ऐसे तेंदुए को रेडियो कॉलर लगाकर उसकी मॉनिटरिंग करने की जरूरत पड़ती है। वर्तमान में जितने भी तेंदुआ अब तक रेस्क्यू किए गए हैं, उनमें से किसी भी तेंदुआ को रेडियो कॉलर नहीं लगाया गया है।